सरसों के खेतों के बीच बसे एक शांत से भारतीय गांव में सरला नाम की एक युवती रहती थी। वह पढ़ी-लिखी थी — शिक्षा में स्नातक — और दिल में ढेरों सपने लिए हुए थी। गरीबी, सामाजिक दबाव और सीमित अवसरों के बावजूद, वह अपने गांव की पहली लड़की थी जिसने कॉलेज की डिग्री हासिल की थी।
जब वह पढ़ाई पूरी करके वापस गांव लौटी, तो लोगों को लगा कि अब वह शहर जाकर कोई अच्छी नौकरी करेगी, पैसे कमाएगी और एक बेहतर ज़िंदगी जिएगी। लेकिन सरला को अपने गांव में कुछ और ही दिखाई दिया — नंगे पांव, धूल से सने लेकिन चमकती आंखों वाले बच्चे, जो उसी अशिक्षा के चक्र में फंसे हुए थे जिससे निकलने के लिए उसने इतनी मेहनत की थी।
उसने गांव के पुराने नीम के पेड़ के नीचे एक छोटी-सी पाठशाला शुरू की। पुराने स्लेट, टूटी हुई खड़ियाँ और अपनी अटूट लगन के सहारे वह बच्चों को पढ़ाने लगी। हर सुबह, बच्चे दौड़ते हुए आते — नंगे पांव, लेकिन उत्साह से भरे हुए। सरला उन्हें गीतों, कहानियों और प्रेम से पढ़ाती। वह सिर्फ अक्षर ज्ञान नहीं देती थी, बल्कि उन्हें सपने देखना सिखाती थी — यह विश्वास कि गांव के बाहर भी एक दुनिया है, जो उनकी अपनी हो सकती है।
शुरुआत में गांव वालों को शक था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने बदलाव महसूस किया। उनके बच्चे अब पढ़ने लगे थे, सवाल पूछने लगे थे, सोचने लगे थे। और यह सब हुआ एक ऐसी लड़की की वजह से, जिसने गांव छोड़ने की बजाय उसे संवारने का फैसला किया।
जहां अक्सर दुनिया की नजर नहीं पहुंचती, वहां सरला एक रौशनी बन गई — शांत, स्थिर और अडिग।
पढ़ाई प्लस एजुकेशनल ट्रस्ट भी एक ऐसे ही आशा की किरण है जो झारखंड के शिक्षा क्षेत्र को विश्वनीय, अकल्पनीय एवं अद्भुत बनाने में अपना योगदान दे रहा है